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कविता

ह्वेल, सत्य का रोमांच और सेंट्रल पार्क की बाबत...

कुमार अनुपम


मैंने ह्वेल देखी कहाँ है

इतना जाना है

कि ह्वेल स्तनधारी होती है

और निरी बुद्धू होती है

 

लेकिन यह जानना ह्वेल को जानना नहीं है

यही तो बताना चाहता है ज्योग्राफिक चैनल

और बायोलॉजी की किताबें भी जिनमें

स्त्री का स्कल्टन

और स्त्री की संरचना भी छपी होती है

 

लेकिन स्त्री के बारे में चित्र देख कर जानना भी

कोई रोमांच पैदा नहीं करता और बायोलॉजी की ‘शुचिता दी’

पढ़ाती भी तो इस शुचिता से थीं कि जानने के चक्कर में

सत्य के रोमांच जैसी चीज कोई

सहम कर दुबक जाती थी

शब्दों की श्रोणि मेखला की गर्त तले

 

लेकिन मैं तो समुद्र की बात कर रहा था,

कहते हैं, जिसमें ह्वेल पाई जाती है

 

नहीं नहीं मैं तो ह्वेल की बात कर रहा था,

कहते हैं, जो समुद्र की नमकीन तरंगों में पाई जाती है

 

क्या हर समुद्र नमकीन तरंगों में डूबा होता है?

क्या हर समुद्र में पाई जाती है ह्वेल?

 

मुझे क्या पता!

 

फिर यह सेंट्रल पार्क में क्या कर रही है ह्वेल

हॉट सीट पर अपने पार्टनर के साथ?

और पार्टनर उसकी त्वचा में क्या तलाश रहा है?

क्या नमकीन तरंगों का समुद्र?

 

मुझे क्या पता!

 

मैंने तो बस इतना जाना है

कि ह्वेल स्तनधारी होती है

और निरी बुद्धू होती है

और समुद्र की नमकीन तरंगों में पाई जाती है

 

(इतनी जल्दी क्यों हो जाती है सेंट्रल पार्क में शाम

और ह्वेल-नमकीन?)

 

ह्वेल के बारे में जानना कोई बच्चों का खेल नहीं

वैसे कहने को कहते हैं यह ही कि बच्चे

ज्यादा जानते हैं ह्वेल के बारे में

 

ह्वेल और बच्चों के संबंध की बाबत जान सकूँ

तो बात बने कुछ शायद!

 

कि संबंधों से भी मिलते हैं

सत्य के कई जरूरी सुराग।


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